भाषणों में जनता को ईमानदारी से टैक्स चुकाने, भ्रष्टाचार से दूर रहने की घुट्टी पिलाने वाले राजनीतिक दल अपना हिसाब—किताब देना ही नहीं चाहते। हिसाब नहीं देने के पीछे का वास्तविक कारण तो सभी जानते हैं कि उनके पास जितना भी पैसा आता है, वह उन कम्पनियों और टैक्स चोरों से आता है जो उन्हें पैसा देकर अपने भ्रष्टाचार को छुपाते हैं।
वैसे तो इस सूची में सभी राजनीतिक दल शामिल हैं, लेकिन पारदर्शिता की बात करके दिल्ली की कुर्सी पर काबिज अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी समेत कुल 17 पार्टियों ने अपना हिसाब—किताब देने में आना—कानी की और चुनाव आयोग के बार बार याद दिलाने के बाद ही आडिट रिपोर्ट जमा कराई। इन रिपोर्ट में भी उन्होंने सिर्फ पार्टी वर्करों से मिले चंदे और मामूली दान को ही दर्शाया है। सभी दलों ने चुनाव बांड से मिली राशि का पूरा हिसाब भी नहीं दिया है।
चुनाव आयोग की वेबसाइट और एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स के मुताबिक आम आदमी पार्टी ने बीते वित्तीय वर्ष का हिसाब देने में 36 दिन की देरी की। इसी तरह रामविलास पासवान की पार्टी ने हिसाब 56 दिन देरी से पेश किया। शिवसेना भी पीछे नहीं रही, उसने आडिट रिपोर्ट 14 दिन देरी से और समाजवादी पार्टी ने तय तिथि से 30 दिन बाद अपना हिसाब चुनाव आयोग को जमा कराया।
हिसाब देने में देरी करने वाले अन्य प्रमुख दलों में राष्ट्रीय जनता दल भी शामिल है। जहां तक उनकी आय का सवाल है तो बीते वित्तीय वर्ष में समाजवादी पार्टी ने 47.19 करोड़, डीएमके ने 35.748 करोड़, टीआरएस ने 27.27 करोड़ की आय दर्शायी है।